उत्तराखंड में आज का दिन भाजपा के लिए महत्वपूर्ण साबित हुआ। बागेश्वर में कैबिनेट मंत्री चंदन रामदास के निधन के बाद हुए उपचुनाव में उनकी धर्मपत्नी पार्वती दास ने लगभग ढाई हजार वोट से चुनाव जीतकर इतिहास रच दिया है। वह बागेश्वर से पहली बार महिला विधायक बन गई हैं। लेकिन बागेश्वर उपचुनाव में हुए कांटे की टक्कर ने उत्तराखंड की राजनीति में कुछ भी होने के संकेत दे दिए हैं। हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि पूर्ण बहुमत की भाजपा सरकार ने बागेश्वर उपचुनाव को जीतने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ी और शुक्रवार को जब मतगणना शुरू हुई तो पहले राउंड से ही भाजपा और कांग्रेस में कांटे की टक्कर दिखाई दी। जो कि अंत तक भी भाजपा की पार्वती दास कोई बड़ी लीड लेने में कामयाब नहीं हुई। जबकि माना यह जाता है कि उपचुनाव में सत्ताधारी दल आराम से चुनाव जीतने में कामयाब रहता है लेकिन बागेश्वर के उपचुनाव में ऐसा देखने को नहीं मिला। या यूं कहें कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने आखिरी के दो दिन बागेश्वर में रहकर चुनाव का रुख मोड़ दिया। लेकिन बागेश्वर में हुए कड़ी टक्कर के चुनाव ने भाजपा को यह संकेत दे दिया है कि आने वाले लोकसभा चुनाव भाजपा के लिए आसान नहीं होने वाला है। म हंगाई, बेरोजगारी, भू कानून अंकित भंडारी एवं पेपर लीक जैसे मामलों ने कहीं ना कहीं प्रदेश की राजनीति में जहां एक और भूचाल खड़ा कर दिया था तो वहीं अब इसका असर शायद आने वाले लोकसभा चुनाव में भी देखने को मिल सकता है। अगर ऐसा हुआ तो यह भाजपा के लिए खतरे की घंटी है हालांकि भाजपा किसी भी चुनाव को हल्के में नहीं लेती है और उसका निचले स्तर के कार्यकर्ता से लेकर उच्च पदों पर बैठे पदाधिकारी अपनी जी जान चुनाव में लगाने में पीछे नहीं रहते हैं और टीम मैनेजमेंट के आधार पर भाजपा को बूथ स्तर पर भी मजबूत माना जाता है। यह भाजपा की सबसे बड़ी खासियत है। अब आने वाला वक्त ही बताएगा कि उत्तराखंड की राजनीति किसी और रुख करेगी।