दो पूर्व मुख्यमंत्रियों के बयान और विधायक उमेश कुमार पर एसएलपी वापसी से असहज हुई भाजपा, पार्टी में अंदरूनी कलह खुलकर आई सामने

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हरिद्वार 20 नवंबर 2022‌। उत्तराखंड में भाजपा एक बार फिर अंतर कला का शिकार होती हुई नजर आ रही है हाल ही में उत्तराखंड के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों के बड़े बयान के बाद प्रदेश प्रदेश के दिल्ली दौड़ने उत्तराखंड की राजनीति में फिर हलचल मचा दी है पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत का एक बयान सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ जिसमें उन्होंने उत्तर प्रदेश में होने वाली कमीशन खोरी को उत्तराखंड में भी जारी होना बता दिया।

तो वहीं पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भी अपने कार्यकाल में स्मार्ट सिटी को नौवें नंबर पर बताया और कहा कि आज के हालात स्मार्ट सिटी के कार्यों को दर्शाते हैं कि प्रदेश कहीं ना कहीं विकास में पीछे छूट रहा है। दोनों के बयान सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद और विपक्ष के लगातार हमलावर रुख के कारण प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट को बातचीत के लिए दिल्ली दौड़ लगानी पड़ी। उन्होंने भाजपा के आलाकमान से मुलाकात की। उनका साफ तौर पर कहना था कि अगर किसी को भी कोई अपनी बात रखनी है तो पार्टी फोरम पर रखे ना कि सार्वजनिक मंच पर। उन्होंने दिल्ली में राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष और प्रदेश प्रभारी दुष्यंत गौतम से भेंट की। बयानों से उपजे सियासी हालात बयां किए।

बताया जा रहा है कि उन्होंने इस बात पर आपत्ति जताई है कि वरिष्ठ नेताओं को सार्वजनिक मंचों के बजाए पार्टी फोरम पर अपनी बात रखनी चाहिए। तो वहीं इसके बाद गुजरात से दिल्ली पहुंचे त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भी भाजपा आलाकमान से मुलाकात की। तो इधर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने त्रिवेंद्र सरकार के समय 2020 में हुए पत्रकार और वर्तमान में विधायक उमेश कुमार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर सरकार की एसएलपी को वापस लेने का फैसला किया। तो इस फैसले ने त्रिवेंद्र गुट में हलचल मचा दी।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक त्रिवेंद्र सिंह रावत ने दिल्ली में भाजपा और आरएसएस के सीनियर पदाधिकारियों से मुलाकात की तो वहीं शनिवार को धामी सरकार ने उमेश कुमार के खिलाफ राजद्रोह मामले में दायर एसएलपी को वापस लेने से अब यू-टर्न ले लिया। यानी अब सरकार सुप्रीम कोर्ट में दायर एसएलपी को वापस नहीं लेगी। लेकिन इन सब बातों ने यह दिखा दिया कि छोटे से राज्य उत्तराखंड में किस तरह से पक्ष या विपक्ष की बात तो छोड़िए। सरकार में मुख्यमंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री के बीच राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई जारी है।

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