भगवान शिव की पूजा करने से दूर होते हैं संकट, मिलती हे मनवांछित खुशियां – म०म० विज्ञानानंद सरस्वती

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हरिद्वार। पवित्र पावन मां गंगा भागीरथी के किनारे बसे हरिद्वार शहर को पंचपुरी हरिद्वार के नाम से भी जाना जाता है। विश्व में प्रसिद्ध विश्व में प्रसिद्ध भगवान शिव शिव शंकर भोलेनाथ की ससुराल कनखल स्थित विष्णु गार्डन में स्थापित श्री गीता विज्ञान आश्रम में कावड़ लेने आए हुए दूर-दूर शहरों और कस्बों से उन श्रद्धालु भक्तों को संबोधित करते हुए आश्रम के पीठाधीश्वर एवं संत महामंडलेश्वर श्री स्वामी विज्ञानानंद सरस्वती महाराज ने कहा कि भगवान शिव अपने भक्तों पर सदैव कृपा करते है। वेे दानी हैंं, महाराज जी ने भक्तों को भगवान शिव के सोने की लंका दान करने का प्रसंग सुनाते हुए कहा कि देवों के देव महादेव भोलेनाथ की परम प्रिय पत्नी पार्वती ने कहा कि हे स्वामी हमारे लिए रहने हेतु भवन की रचना करें। क्योंकि आप हमेशा कैलाश पर्वत पर ही विराजमान रहते हैं। यहां पर सभी देवी देवताओं को पहुंचने में समय लगता है। इसलिए धरती लोक पर अवश्य एक ठिकाना स्थापित करें।

शिव जी ने कहा ठीक है प्रिये। महाराज जी ने श्रद्धालुओं को बताया कि शिव जी ने तीनों लोकों में, सबसे अधिक सुंदर और प्रिय नगरी सोने की लंका का निर्माण विश्वकर्मा जी ने कराया। सोने की लंका की रचना होते ही भगवान शिव जी के परम भक्त रावण ने भोलेनाथ के पास आकर विनती करते हुए कहा कि हे प्रभु आप तीनों लोकों के स्वामी हैं। मुझे आपसे एक वर दान मांगना है। महादेव भोलेनाथ ने कहा ठीक है। आप मांगो, रावण ने वरदान मांगा हे प्रभु मुझे आप इस लंका को दान कर दें। रावण भगवान शिव जी का ऐसा परम भक्त था कि वह आहुतियां में अपना शीश चढ़ाकर देने के लिए विख्यात था। भोलेनाथ ने बिना देर किए ही ‌‌विश्रुवा के पुत्र रावण को सोने की लंका दान कर दी। इस पर मां पार्वती को बहुत ही अचंभा हुआ। भोलेनाथ ने मां पार्वती से बोलते हुए कहा कि हम कैलाश पर ही ठीक हैं। महामंडलेश्वर श्री स्वामी विज्ञानानंद सरस्वती जी महाराज जो शतायु की ओर बढ़ चुके हैं ने कहा कि श्रावण मास में भगवान भोलेनाथ कनखल हरिद्वार में महीने भर विराजमान रहते हैं। वे मन, क्रम, वचन और श्रद्धा भक्ति भाव से अपने भक्तों के द्वारा चढ़ाए हुए जल और विल्व पत्र से ही प्रसन्न हो जाते हैं। उन्होंने कहा अपने भक्तों के कल्याण के लिए भगवान भोलेनाथ हर समय तत्पर रहते हैं। इसलिए भक्तों को उनकी आराधना,जाप, आरती, पूजा-पाठ सात्विक भाव से करनी चाहिए। उन्होंने आगे अपने संबोधन में कहा कि समुद्र मंथन से जो हलाहल जहरीला विष(जहर) सभी जीव जंतुओं के लिए खतरा बना था, भगवान शिव ने सभी देवी देवताओं के आग्रह पर उस जहरीले जहर को अपने गले में धारण कर लिया और इससे वे नीलकंठ महादेव भी कहलाए, उनके सहस्त्रनाम हैं। महाराज जी ने कहा कि भक्तों को किसी एक प्रिय नाम से सुबह शाम एक एक माला का जाप भी करना चाहिए। निश्चित ही भक्तों की सभी मनोकामना पूरी होती हैं।

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