राम मंदिर मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा में नहीं जाएंगे चारों शंकराचार्य, चंपतराय से इस्तीफ़े की मांग के साथ रामानंद संप्रदाय को मंदिर सौंपने की भी मांग

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हरिद्वार 9 जनवरी 2024। 22 जनवरी को अयोध्या के राम मंदिर में रामलला की मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है। लेकिन उससे पूर्व अब समारोह पर कई सवाल खड़े हो रहे हैं, सनातन धर्म के ध्वजवाहक एवं चारों पीठों के शंकराचार्यों ने अलग-अलग टिप्पणियां करके प्राण प्रतिष्ठा समारोह को धर्म और शास्त्रों के विरुद्ध करार दिया है।

शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती

किसी ने पौष महीने को शुभ कार्यों के ठीक नहीं बताया है, तो पुरी पीठ के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती ने यह कहकर जाने से मना कर दिया है कि अगर प्रधानमंत्री मोदी प्राण प्रतिष्ठा करेंगे तो क्या हम वहां ताली बजाएंगे। उन्होंने कहा कि शंकराचार्य का पद प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति से भी बड़ा होता है और हमें अपने पद की गरिमा का ध्यान है। वही शंकराचार्यों का एक स्वर में कहना है की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा किसी संत या विद्वान ब्राह्मण से करवानी चाहिए।

शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती

शंकराचार्यों का कहना है कि हम भगवान राम के वंशज हैं और भगवान राम सबके दिलों में हैं। लेकिन कभी भी अधूरे मंदिर में भगवान की मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा नहीं की जाती है। वहीं राम मंदिर को लेकर ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती मुखर हैं और अब उन्होंने राम मंदिर को वैष्णव संप्रदाय को सौंपने की बात कहते हुए चंपत राय से इस्तीफ़े की मांग कर दी है।

शारदा पीठ के शंकराचार्य सदानंद सरस्वती

उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठ के जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानंद: सरस्वती महाराज ने कहा है कि यदि राम मंदिर रामानंद संप्रदाय का है तो मंदिर संप्रदाय को सौंप देना चाहिए। इसमें पूरे संत समाज को कोई आपत्ति नहीं होगी। उन्होंने कहा कि चंपत राय सहित सभी पदाधिकारियों को इस्तीफा देना चाहिए। शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि वे प्रधानमंत्री मोदी के विरोधी नहीं है। बल्कि उनके हितेषी हैं और इसलिए उन्हें सलाह दे रहे हैं कि वे शास्त सम्मत कार्य करें। विरोधी तो वे हैं जो उनसे अशास्त्रीय कार्य करवाकर उनके अहित का मार्ग खोल रहे हैं।

श्रृंगेरी पीठ के शंकराचार्य भारती तीर्थ

ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानंद: सरस्वती महाराज ने स्पष्ट करते हुए कहा कि शंकराचार्यों का अपना कोई भी मंदिर नहीं होता है। वे केवल धर्म व्यवस्था देते हैं। चंपतराय को जानना चाहिये कि शंकराचार्य और रामानन्द सम्प्रदाय के धर्मशास्त्र अलग अलग नहीं होते। उन्होने सवाल किया कि वे बतायें कि क्या रामानंद संप्रदाय अधूरे मंदिर में प्रतिष्ठा को शास्त्र सम्मत मानता है?

शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद: ने चंपत राय के बयान पर कहा कि पहले उपेक्षा और अब प्रेम उमड़ रहा है। रामानंद संप्रदाय के प्रति उनकी आस्था को इस बात से समझा जा सकता है कि रामानन्द संप्रदाय निर्मोही अखाडे के एक सदस्य को सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर रखा गया और दूसरे सदस्य को नाम मात्र का अध्यक्ष बनाकर बैठक के पहले दिन ही अभिलेखों में उनके हस्ताक्षर करने के अधिकार को भी छीन लिया गया था यह सर्वविदित तथ्य है।

ज्ञातव्य है कि यह बयान ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानंदः सरस्वती ने राम मंदिर ट्रस्ट के सचिव चंपतरात के उस बयान के बाद दिए हैं जिसमें उन्होंने मीडिया से बातचीत में कहा कि ‘राम मंदिर रामानंद संप्रदाय से जुड़े लोगों का है, शंकराचार्य शैव और शाक्त का नहीं’
इस पर अपनी बात रखते हुए शंकराचार्य ने कहा यदि राम मंदिर रामानंद संप्रदाय से जुड़े लोगों का है तो इस मंदिर को प्रतिष्ठा से पूर्व रामानंद संप्रदाय से जुड़े लोगों को दे दिया जाना चाहिए। इस पर किसी को कोई आपत्ति नहीं होगी। इसके अलावा उन्होंने कहा कि चंपतराय के अलावा सभी पदाधिकारियों को इस्तीफा भी देना चाहिए।

उन्होंने कहा कि चारों पीठों के शंकराचायों को कोई राग द्वेष नहीं है। लेकिन उनका मानना है कि शास्त्र सम्मत विधि का पालन किये बिना मूर्ति स्थापित किया जाना सनातनी जनता के लिये अनिष्टकारक होने के कारण उचित नहीं है।

उन्होंने कहा कि पूर्व में तत्कालीन परिस्थितियां ऐसी थीं कि बिना मुहूर्त के ही राम जी की मूर्ति को सन 1992 में स्थापित किया गया था। लेकिन वर्तमान समय में स्थितियां अनुकूल है। ऐसे में उचित मुहूर्त और समय का इंतजार किया जाना चाहिए।

शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा है कि आधे अधूरे मंदिर में भगवान को स्थापित किया जाना न्यायोचित और धर्म संम्मत नहीं है। शंकराचार्य ने कहा कि निर्मोही अखाड़े को पूजा का अधिकार दिए जाने के साथ ही रामानंद संप्रदाय को मंदिर व्यवस्था की जिम्मेदारी दी जानी चाहिए।

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