ब्रेकिंग : सन 2000 के बाद उत्तराखंड विधानसभा में इन बड़े नेताओं के रिश्तेदारों और करीबियों की लगी नौकरी, जमकर बटी रेवड़ी, सबने अपने अपनों को दी

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हरिद्वार। उत्तराखंड अधीनस्थ चयन सेवा आयोग के वीडीओ और वीपीडीओ पेपर की जांच जहां एक ओर एसटीएफ द्वारा की जा रही है तो वहीं उत्तराखंड में अलग-अलग भर्तियों में घोटाले सामने आने के बाद हड़कंप मचा हुआ है। उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग में पेपर लीक का मामला सामने आने के बाद, वन आरक्षी परीक्षा में घपला, न्यायिक सेवा में कनिष्ठ सहायक परीक्षा घपला, सचिवालय रक्षक परीक्षा घपला, 2015 में उत्तराखंड पुलिस में दारोगा भर्ती के मामला और अब 2021 के दिसंबर में हुई उत्तराखंड विधानसभा में 73 पदों पर नियुक्ति विवादों के घेरे में हैं और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस पर भी जांच की बात कही है।

2017 विधानसभा चुनाव से पहले 2016 में कांग्रेस की सरकार में की गई विधानसभा में नियुक्तियां

उत्तराखंड विधानसभा भर्ती घोटाले में जहां पूरे देश में भाजपा की भ्रष्टाचार मुक्त की साख छवि पर दाग लगा हुआ है। तो वहीं अब विधानसभा नियुक्तियों में रेवड़ी की तरह नौकरियां बांटे जाने का एक और खुलासा हुआ है जहां 2016 में कांग्रेस की सरकार में स्पीकर रहे गोविंद सिंह कुंजवाल ने 154 पदों पर आवेदन पत्रों के आधार पर ही नियुक्तियां दे दी।

इस भर्ती में यह भी कहा जा रहा है कि गोविंद सिंह कुंजवाल ने अपने रिश्तेदारों को नौकरी पर लगवाया और भाई भतीजावाद की रेवड़ियां विधानसभा में सरेआम बांटी गई। इस मामले पर मीडिया से बात करते हुए गोविंद सिंह कुंजवाल ने कहा कि भर्तियों में कुछ भी गलत नहीं है और यह मामला हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जा चुका है और दोनों ही उच्च न्यायालय ने इसे वैध ठहराया था। तो अब इसमें भाई भतीजावाद का आरोप लगाना सरासर गलत है। साथ ही उन्होंने कहा कि यदि कोई इस मामले में सीबीआई या किसी उच्च स्तरीय एजेंसी से जांच करवाना चाहता है तो जरूर कराएं अगर मैं इसमें दोषी पाया जाता हूं तो जो सजा मुझे दी जाएगी मैं उसे कबूल कर लूंगा। साथ ही उन्होंने कहा कि मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि इन भर्तियों में मुख्यमंत्री के दवाब में भी कई लोगों को रखा गया और कई अधिकारियों और कैबिनेट मंत्रियों के करीबी आदमियों को भी इसमें नियुक्तियां दी गई।

सबसे बड़ा सवाल इस समय प्रदेश में यही खड़ा हो रहा है कि आखिरकार प्रदेश के नौ से दस लाख युवाओं के साथ खिलवाड़ अब तक क्यों किया जा रहा था और सच्ची कर्तव्यनिष्ठा की शपथ लेने वाले नेता आखिर यह कैसे भूल गए कि चुनाव के वक्त तो जनता तो भगवान का रूप है और चुनावों के बाद जनता के साथ ही धोखा किया जा रहा है।

सन 2000 के बाद से विधानसभा में इस तरह फैला भाई भतीजावाद का व्यापार।

9 नवंबर 2000 के बाद उत्तराखंड एक अलग राज्य के रूप में स्थापित हुआ लेकिन किसी ने नहीं सोचा था कि जैन आशाओं का नशा को लेकर इस राज्य की स्थापना हुई एक दिन यही का युवा अपने आप को ठगा सा महसूस करेगा क्योंकि राज्य बनने के बाद ही जिस तरह से यहां के नेताओं ने अपनी राजनीतिक छवि चमकाने के लिए अपने सगे संबंधियों और करीबियों को नौकरियों में शामिल करवाया यह धीरे-धीरे उजागर होने लगा है। सोशल मीडिया पर वायरल कुछ तस्वीरें इसका सबूत दे रही है कि किस तरह से चाहे किसी भी पार्टी का बड़े से बड़ा नेता का रिश्तेदार हो उनको जिस तरह से उत्तराखंड विधानसभा में नौकरियां दी गई यह पत्र और सूची उनको दर्शा रही है।

इन सूची को देखकर आप अंदाजा लगा सकते हैं कि उत्तराखंड के युवाओं के साथ किस प्रकार से यहां के नेता धोखा करते हुए आ रहे हैं और उसके बाद योग्यता के आधार पर और नियमानुसार का हवाला देकर इन बातों से गैर जिम्मेदार व्यक्तियों की तरह पल्ला झाड़ने की भी कोशिश कर रहे हैं।

खुद के वेतन बढ़ाने पर किए गए आदेश 

कैबिनेट मंत्री रेखा आर्य कभी पत्र वायरल हुई एक मामले में कैबिनेट मंत्री देखा आर्य का भी पत्र भरा हुआ जिसमें उन्होंने उस लोगों को सीधे तौर पर नौकरी पर रखने के लिए आदेश किया है इस मामले पर लिखा रहा है कहना है कि मैंने कुछ भी गलत नहीं किया।

और मैं एक जनप्रतिनिधि हूं तो यह मेरा अधिकार है कि मैं योग्यता के आधार पर लोगों को नौकरी पर रखने का आदेश जारी कर सकती हूं सबसे बड़ी बात तो यह है कि जब प्रदेश में आयोग का गठन किया गया तो नियम और कानूनों को ताक पर रखकर ऐसे विधानसभा में कैसे भर्तियां हो रही है?

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बैकफुट पर भाजपा

दूसरी ओर वर्तमान की भाजपा सरकार बैकफुट पर नजर आ रही है और पूर्व में विधानसभा अध्यक्ष रहे प्रेमचंद अग्रवाल ने बिना वित्तीय बजट स्वीकार करें ही दिसंबर 2021 को 73 लोगों को विधानसभा में नियुक्ति दे दी ना ही कोई परीक्षा हुई ना ही कोई साक्षात्कार हुआ और सीधा अफसर से लेकर तमाम पदों पर नियुक्तियां हो गई। सबसे बड़ा खुलासा तो इस मामले में यह है कि 30 मार्च 2022 को वित्तीय बजट को स्वीकार्यता दी गई जब खुद सरकार आने के बाद प्रेम से अग्रवाल कैबिनेट मंत्री बने तो साफ तौर पर देखा जा सकता है कि कैसे विधानसभा के भर्तियों में नियम और कानून को अपने हिसाब से एडजस्ट किया गया। अब देखने वाली बात यह होगी कि इस मामले में कांग्रेस हमलावर है और भाजपा ने अपने तमाम पार्टी के विधायकों को इस मामले पर बोलने से बचने के लिए निर्देश किया है तो वहीं उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कैबिनेट मंत्री प्रेम चंद्र अग्रवाल को नसीहत दी

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और कहा कि अगर इस तरह से नियुक्तियां हुई हैं तो उसकी जांच होनी चाहिए और साथ ही उन्होंने कहा कि मैंने तो अपने कार्यकाल में इन नियुक्तियों पर परीक्षा कराने के लिए हस्ताक्षर किए थे उसके बाद जब मुझे मुख्यमंत्री के पद से हटाया गया तो मुझे इस बारे में कुछ ज्ञात नहीं है कि उसके बाद क्या हुआ और क्या नहीं। कहीं ना कहीं भाजपा के नेता ही इस मामले में दलदल में फंसते हुए नजर आ रहे हैं और मीडिया से बचने की भी कोशिश कर रहे हैं।

छात्र कर रहे सीबीआई जांच की मांग

वही पूरे मामले पर चाहे वह उत्तराखंड अधीनस्थ चयन सेवा आयोग की भर्ती में पेपर लीक का मामला हो, क्योंकि जिस तरह से रोजाना गिरफ्तारियां हो रही है और मामला दूसरों राज्यों से भी जुड़ता चला जा रहा है और साथ ही अलग-अलग भर्तियों में घोटालो घपले के साक्ष्य सामने आ रहे हों, इन सब को मद्देनजर रखते हुए प्रदेश के बेरोजगार युवा सारी भर्तियों में सीबीआई जांच की मांग कर रहे हैं और अलग-अलग जगह से पत्र भी राज्यपाल मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेजे जा रहे हैं।

लेकिन वहीं दूसरी और मेहनत करके परीक्षा पास करने वाले छात्र भी सड़कों पर उतरे हुए हैं और उनका कहना है कि जब परीक्षा निरस्त ही करनी थी तो हमने मेहनत क्योंकि और परीक्षा की विज्ञप्ति में लिखा जाना चाहिए था कि यह परीक्षा कभी भी निरस्त हो सकती है जिससे हम कभी इसकी तैयारी ना करते। उनका कहना है कि जिसने पेपर लीक किया और जो भी लोग पैसे और पावर के बल पर पास हुए हैं उनके ऊपर कठोर कार्रवाई होनी चाहिए। हमें बेमतलब में इस मामले में घसीटा जा रहा है और परीक्षा रद्द करना न्याय उचित नहीं है। कुछ चयनित छात्रों ने इस मामले में आज मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से भी मुलाकात की है।

अब देखना यह होगा कि मुख्यमंत्री ने हाल ही में मौखिक रूप से सभी परीक्षाओं को जिस में गड़बड़ी पाई गई है निरस्त करने की बात कही थी, तो क्या अब फिर से एक बार फैसला बदला जाएगा, या सभी परीक्षा निरस्त होंगी। बरहाल यह आने वाला वक्त ही बताएगा लेकिन उत्तराखंड के युवा जिस तरह से आज सड़क पर उतरे हुए हैं इससे साफ हो गया है कि यहां के नेताओं ने यहां के युवाओं के साथ पीठ में छुरा घोपने का काम किया है और एक ऐसा इतिहास लिखा गया है कि आने वाली कई पीढ़ियां और सदियां इसको नहीं भूलेंगी।

राहुल गांधी ने भी खड़े किए सवाल, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी मौन

उत्तराखंड में छात्रों के भविष्य के साथ हो रहे खिलवाड़ पर कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी केंद्र की मोदी सरकार और प्रदेश की सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि उत्तराखंड में गरीब लोगों की नौकरियां छीन कर अमीरों की झोली में डाली जा रही है। उन्होंने सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि स्वच्छता और भ्रष्टाचार मुक्त भारत की बात करने वाली भाजपा का चेहरा आज सड़क सामने आ गया है।

साथ ही उन्होंने इन सभी भर्तियों की मांग भी उच्च स्तरीय एजेंसी से करने की अपील की तो वहीं दूसरी और अब प्रधानमंत्री मोदी पर भी लोग सवालिया निशान उठा रहे हैं क्योंकि इतने बड़ा घोटाले जिसमें पूरे देश के तमाम नेताओं के बयान आ रहे हैं, लेकिन पीएम मोदी का चुप रहना भी लोगों को रास नहीं आ रहा है और छात्र मोदी से इस संबंध में संज्ञान लेने के साथ-साथ जिम्मेदार नेताओं पर कार्रवाई की मांग कर रहे हैं।

 

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