ब्रेकिंग : उत्तराखंड के ऋषिकेश में खतरनाक अफ्रीकन स्वाइन फीवर ने दी दस्तक, जिलाधिकारी ने तीन जोन में बांटा क्षेत्र, दिए जरूरी दिशा निर्देश

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देहरादून। जिलाधिकारी डाॅ0 आर राजेश कुमार ने अवगत कराया है कि जनपद देहरादून के ऋषिकेश नगर निगम क्षेत्रान्तर्गत सूअर पशुओं में अफ्रीकन स्वाईन फीवर रोग (African swine fever disease in pigs) की पुष्टि होने के फलस्वरूप रोग की रोकथाम हेतु क्षेत्र को तीन भागों यथा इन्फेक्टेड जोन, सर्विलांस जोन, डिजीज फ्री जोन में विभाजित करने के आदेश दिए गए है।

जिलाधिकारी ने अवगत कराया कि इन्फेक्टेड जोन ऋषिकेश नगर निगम क्षेत्रान्तर्गत रोग की पुष्टि हुई है, से एक कि०मी० की परिधि को इन्फैक्टेड जोन घोषित किया गया है। इस क्षेत्र में सूअर मांस /सुअर मास की दुकानो /सुअर आवगमन पर पूर्ण रूप से प्रतिबन्धित किया गया है।

संक्रमित क्षेत्र एवं स्थानीय डिसइन्फेक्शन, फ्यूमिगेशन तथा टिक्स की रोकथाम के उपाय करने तथा रोगी पशुओं को स्वस्थ्य पशुओं से अलग रखे जाने के निर्देश दिए गए हैं। इन्फैक्टेड जोन में आने वाले सूअर पशुओं की कलिंग करतेे हुए कार्कसंज को वैज्ञानिक तरीके से डिस्पोजल किये जाने के निर्देश दिए गए है।

सर्विलान्स जोन- इन्फेक्टेड जोन से 10 कि०मी० की परिधि में आने वाले क्षेत्र को सर्विलान्स जोन घोषित किया गया है। इस क्षेत्र में भी सूअरों का आवगमन पूर्णतया वर्जित होगा तथा प्रत्येक 15 दिनों में उक्त क्षेत्र से सूअरों के नमूने प्राप्त कर जांच हेतु सम्पर्क ICAR-NISHAD भोपाल प्रयोगशाला भेजे जाने के निर्देश दिए गए है।

डिजीज फ्री जोन सर्विलांस जोन से बाहर के जनपद देहरादून के समस्त क्षेत्र को डिजीज फ्री जोन घोषित किये गए हैं। उक्त क्षेत्र में कोई भी सूअर पशु अन्य क्षेत्र में नहीं भेजा जायेगा और न ही लाया जायेगा। अर्थात सूअर पशुओं का आवागमन पूर्णतया प्रतिबन्धित रहेगा। उक्त प्रतिबन्ध आगामी 2 माह अथवा क्षेत्र में रोग प्रकोप की सूचना शून्य होने तक, जो बाद में हो, तक लागू रहेगें।

एशिया में ऐसे फैलना हुआ शुरू

यूनाइटेड नेशन फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन के अनुसार अफ्रीकी स्वाइन फीवर के हालिया आउटब्रेक का असर चीन, मंगोलिया, वियतनाम, कंबोडिया, म्यांमार, फिलिपिन्स, रिपब्लिक ऑफ कोरिया और इंडोनेशिया में पड़ा है। चीन में इस फीवर का पहला आउटब्रेक अगस्त 2018 में हुआ था। इसके बाद से अब तक देश में तकरीबन 10 लाख सुअरों को मारा जा चुका है। वहीं वियतनाम में इस बीमारी का आउटब्रेक फरवरी 2019 में हुआ था। तब से अब तक देश में 60 लाख सुअर मारे जा चुके हैं।

अधिकारियों का मानना है कि अफ्रीकी स्वाइन फीवर भारत में सबसे पहले तिब्बत में आया फिर अरुणाचल प्रदेश से असम पहुंचा है। गौरतलब है कि भारत में सबसे ज्यादा सुअरों की संख्या असम में ही है। इंडियन एक्सप्रेस पर प्रकाशित एक स्टोरी के मुताबिक असम के कृषि एवं पशुपालन मंत्री अतुल बोरा ने कहा है-तिब्बत की सीमा अरुणचाल से लगती है। संभव है ये वहां से अरुणाचल होते हुए फिर असम आया है।

हालांकि अभी तक ये जानकारी पुष्ट नहीं है कि ये बीमारी भारत कैसे पहुंची। असम में एनिमल हेल्थ के डिप्टी डायरेक्ट प्रदीप गोगोई के मुताबिक इस वायरस के वाहक जंगली सुअर भी हो सकते हैं। अभी तक इसे कोई स्पष्ट जानकारी नहीं कि ये असम कैसे पहुंचा।

बीते महीने असम सरकार ने सुअरों के स्लॉटर और बिक्री पर रोक लगा दी थी। सैंपल भोपाल स्थित National Institute of High Security Animal Diseases (NIHSAD) को भेजे गए थे। इंस्टिट्यूट ने बाद में कंफर्म कर दिया कि इन सैंपल में अफ्रीकी स्वाइन फीवर के लक्षण हैं। अरुणाचल प्रदेश के भी दो जिलों के सुअरों में इस बीमारी के लक्षण मिले हैं। राज्य में अब तक इस बीमारी से 1 हजार सुअर मर चुके हैं। World Organisation for Animal Health (WOAH) के मुताबिक 2018 से 2019 तक ये बीमारी 3 यूरोपीय और 23 अफ्रीकी देशों में फैली है।

क्या होता है अफ्रीकी स्वाइन फीवर

अफ्रीकी स्वाइन फीवर एक वायरल बीमारी है जिसका असर जंगली और पालतू सुअरों में होता है। इस बीमारी में तेज बुखार के बाद दिमाग की नस फटने की वजह से सुअरों की मौत हो जाती है। इस रोग के होने के बाद सुअरों के बचने का प्रतिशत तकरीबन ना के बराबर होता है। इसमें मृत्यु दर 100 प्रतिशत मानी जाती है। ये रोग एक से दूसरे सुअर के डायरेक्ट कॉन्टैक्ट में आने से फैलता है। साथ ही अगर किसी संक्रमित सुअर ने कुछ खाकर छोड़ दिया हो और उसे कोई दूसरा स्वस्थ सुअर खा ले, तो भी ये रोग जाता है। ये रोग पहले के स्वाइन फीवर से अलग है। हालांकि लक्षणों में समानता है। इसी वजह से पहले वाले स्वाइन फीवर के लिए तैयार की गई वैक्सीन अफ्रीकन स्वाइन फीवर से ग्रसित सुअरों पर असर नहीं डाल रही है।

ये बीमारी सुअरों के लिए बेहद खतरनाक है लेकिन अभी ये अन्य जानवरों में नहीं फैल रही है। अभी तक इसकी कोई वैक्सीन नहीं तैयार हुई है। इसी वजह से सरकारें संक्रमित सुअरों को मार देने का आदेश दे रही हैं। जिससे अन्य स्वस्थ सुअरों को बचाया जा सके।

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