शहरों में कम और ग्रामीण इलाकों में ज्यादा वोटिंग से क्या फंस गई हरिद्वार सीट! क्यों घरों से नहीं निकले वोटर? क्या कहते हैं वरिष्ठ पत्रकार

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19 अप्रैल को हुए पहले चरण के मतदान में हरिद्वार लोकसभा में लगभग 66.87 प्रतिशत मतदान हुआ। जो पिछले चुनाव की तुलना में लगभग 2-3 फ़ीसदी कम रहा। अब सियासी गलियारों में कई तरह की चर्चाएं तेज है। मत प्रतिशत कम होने के कारण यह आशंकाएं भी जताई रही है कि कहीं भाजपा की नैय्या बीच मझधार में तो नहीं अटक गई! शहरी क्षेत्र में जहां भाजपा का गढ़ माना जाता है, वहां वोटर घरों से बाहर नहीं निकले और नतीजा यह रहा की पिछली बार की तुलना में लगभग 5 से 6 फ़ीसदी मतदान शहरों में काम हुआ, वहीं ग्रामीण इलाकों की बात करें तो मुस्लिम और दलित बाहुल्य क्षेत्र में लगभग 70 फ़ीसदी से ऊपर मतदान विधानसभाओं में हुआ है, जिससे यह अंदेशा जताया जा रहा है कि कहीं हरिद्वार सीट फंस तो नहीं चुकी! जैसे आपको एक उदाहरण के तौर पर समझाते हैं, 2019 के लोकसभा चुनाव में हरिद्वार शहर में 62.31 फ़ीसदी मतदान हुआ था। जो की 2024 के लोकसभा चुनाव में घटकर 56.22 फीस दी ही रहा। जबकि 2019 में ऋषिकेश में 60.75 फ़ीसदी मतदान हुआ था जो लोकसभा में घटकर 52.99 फ़ीसदी ही रहा। समावेश यही हाल रुड़की और अन्य शहरी क्षेत्रों का रहा। लेकिन ग्रामीण क्षेत्र की बात करें तो मतदान में वहां 2019 के मुताबिक थोड़ी कमी आई है, लेकिन तीन चार फीसदी से ज्यादा का अंतर ग्रामीण क्षेत्रों के आंकड़े में नहीं है, जबकि शहरी क्षेत्र में यह अंतर 5 से 6% के बीच में है। जैसे हरिद्वार ग्रामीण की बात करें तो 2024 के चुनाव में वहां 72.62 फीसदी मतदान हुआ है जबकि 2019 में वहां 77.88 फीसदी मतदान हुआ था। इससे कहां जा सकता है कि हरिद्वार में त्रिवेंद्र रावत और वीरेंद्र रावत की लड़ाई दिलचस्प मोड़ पर आ चुकी है। जिसका आकलन शुरुआत में नहीं लगाया जा रहा था, क्योंकि कांग्रेस के टिकट में देरी हुई थी और त्रिवेंद्र रावत पहले दौर का चुनाव प्रचार समाप्त कर चुके थे, साथ ही यह भी माना जा रहा था कि लोग पीएम मोदी के नाम पर घरों से एक बार फिर वोट देने के लिए भूथ पर उमड़ेंगे, जैसा होता हुआ बिल्कुल दिखाई नहीं दिया।

क्या कहते हैं वरिष्ठ पत्रकार?

उत्तराखंड और यूपी में पिछले 40 साल से भी ज्यादा पत्रकारिता के क्षेत्र के अनुभवी वरिष्ठ पत्रकार ओम गौतम फक्कड़, जिन्हें कई लोकसभा चुनाव से लेकर विधानसभा और नगर निगम, नगर पालिका के चुनाव में जीत हार के आकलन की महारत हासिल है, बताते हैं कि जब भी वोट प्रतिशत में इजाफा होता है या फिर पिछले चुनाव के आंकड़े रिपीट होते हैं, तो भाजपा उतनी महफूज रहती है या कह सकते हैं कि भाजपा की वापसी की उम्मीद बढ़ जाती है। लेकिन जब भी पिछले चुनाव के आंकड़ों से वोट प्रतिशत कम रहता है तो यह संकेत भाजपा के लिए शुभ साबित नहीं होते। अमूमन देखा गया है कि जहां भी संसदीय चुनाव में वोट प्रतिशत कम हुआ है, वहां भाजपा की सीट फंस जाती है और नतीजा उनके पक्ष में आने की उम्मीद भी कम हो जाती है। उन्होंने कहा जैसा सीधे तौर पर देखा जा सकता है की शहरी क्षेत्र में गर्मी, वीकेंड, राजनीतिक पार्टियों के प्रचार की कमी व वोटरों में उदासीनता और मतदान वाले दिन भाजपा संगठन की उतनी सक्रियता ना दिखना यह कारण है कि शहरी क्षेत्र का वोटर घरों से नहीं निकला। जबकि ग्रामीण इलाके जैसे ज्वालापुर, पिरान कलियर, झबरेड़ा, लक्सर, हरिद्वार ग्रामीण, भगवानपुर की बात की जाए तो अच्छी खासी पोलिंग ग्रामीण क्षेत्रों में हुई है और लगभग 70 फ़ीसदी से ऊपर मतदान इन विधानसभाओं में हुआ है, हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि देखना होगा कि उमेश कुमार ग्रामीण क्षेत्रों में कितना दमखम रखने में कायम होते हैं, उन्होंने बताया यदि उमेश कुमार ग्रामीण क्षेत्रों में सेंधमारी करने में सफल हुए तो इसका सीधा फायदा भाजपा को होते हुए दिखाई देगा, हालांकि यह नहीं कहा जा सकता कि उमेश कुमार की सेंधमारी सिर्फ कांग्रेस के ही नुकसान देगी, लेकिन यदि उन्होंने रुड़की, हरिद्वार, ऋषिकेश या अन्य शहरी क्षेत्र में वोटों की सेंधमारी की, तो उसका नुकसान कांग्रेस से ज्यादा भाजपा को भी हो सकता है। उन्होंने कम मत प्रतिशत को लेकर कहा कि इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि जनता को प्रत्याशी पसंद ना आए हो, इसलिए भी जानता किसी को वोट डालने घरों से नहीं निकली।

4 जून को स्पष्ट हो जाएगी स्थिति

उत्तराखंड की पांचो लोकसभा सीटों में चुनाव लड़ रहे प्रत्याशियों की किस्मत ईवीएम में कैद हो गई है और आगामी 4 जून को मतगणना के साथ स्थिति स्पष्ट हो जाएगी की हरिद्वार या अन्य सीटों पर जनता किस प्रत्याशी को अपना सेवक सुनेगी हालांकि फिलहाल स्थिति बिल्कुल साफ नजर नहीं आ रही या यूं कहें कि मामला फंसा हुआ दिखाई दे रहा है। खास बात यह रही कि इस चुनाव में महंगाई, बेरोजगारी और अग्नि वीर योजना जैसे कई बड़े मुद्दे वोटरों के दिमाग में रहे।

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