महान तपस्वी संत थे ब्रह्मलीन बौधप्रकाश महाराज- स्वामी परमात्मदेव

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हरिद्वार। ब्रह्मलीन स्वामी बौधप्रकाश महाराज की 23वीं पुण्यतिथी संत महापुरूषों की उपस्थिति में भूतपवाला स्थित ब्रह्मनिवास आश्रम में समारोहपूर्वक मनायी गयी।

इस अवसर पर श्रद्धालु संगत को संबोधित करते हुए आश्रम के परमाध्यक्ष महामण्डलेश्वर स्वामी परमात्मदेव महाराज ने कहा कि निर्मल जल के समान जीवन व्यतीत करने वाले महान तपस्वी संत ब्रह्मलीन स्वामी बौद्धप्रकाश महाराज ने जीवन पर्यन्त भक्तों को ज्ञान की प्रेरणा देकर उनके कल्याण का मार्ग प्रशस्त करने के साथ सनातन धर्म संस्कृति के प्रचार प्रसार में अहम योगदान दिया। उनके द्वारा प्रदत्त शिक्षाओं व ज्ञान का अनुसरण करते हुए आश्रम की सेवा परंपरांओं को निरन्तर आगे बढ़ाया जा रहा है।

श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल के अध्यक्ष श्रीमहंत ज्ञानदेव सिंह महाराज ने कहा कि ब्रह्मलीन स्वामी बौधप्रकाश महाराज संत समाज के प्ररेणा स्रोत थे। धर्म संस्कृति के प्रति उनका ज्ञान विलक्षण था। युवा संतों को उनके जीवन से प्रेरणा लेते हुए सनातन धर्म संस्कृति के उत्थान में अपना योगदान प्रदान करना चाहिए।


स्वामी कृष्णदेव महाराज ने कहा कि संत महापुरूष केवल शरीर त्यागते हैं। उनकी शिक्षाएं अनंतकाल तक समाज का मार्ग दर्शन करती हैं। ब्रह्मलीन स्वामी बौधप्रकाश महाराज ऐसे ही विलक्षण संत थे। समस्त संत समाज ऐसे महापुरूषों को नमन करता है।
महामण्डलेश्वर स्वामी ललितानंद गिरी महाराज ने कहा कि ब्रह्मलीन स्वामी बौधप्रकाश महाराज ने समाज से जात पात ऊंच नीच का भेदभाव मिटाकर समरसता का संदेश दिया और विश्व भर में सनातन धर्म एवं भारतीय संस्कृति की पताका को फहराया।


स्वामी रविदेव शास्त्री ने कहा कि संतों का जीवन सदैव परमार्थ को समर्पित रहता है और ब्रह्मलीन स्वामी बौधप्रकाश महाराज तो साक्षात परोपकार एवं करूणा की प्रतिमूर्ति थे। जिन्होंने अपने जीवन काल में राष्ट्र की एकता अखंडता बनाए रखने में अपना अहम योगदान प्रदान किया।


स्वामी ऋषिश्वरानन्द महाराज ने कहा कि ब्रह्मलीन स्वामी बौद्धप्रकाश महाराज ज्ञान एवं वैराग्य की प्रतिमूर्ति थे। उन्होंने सदैव भावी पीढ़ी को संस्कारवान बनाने के लिए युवाओं को प्रेरणा दी और उन्हें धर्म व संस्कृति के प्रति जागृत किया। धर्म एवं संस्कृति के संरक्षण संवर्धन में उनका योगदान सदैव स्मरणीय रहेगा।

इस अवसर पर स्वामी रविदेव शास्त्री, महंत सुतीक्ष्ण मुनि, स्वामी हरिहरानंद, महंत दामोदर दास, महंत प्रह्लाद दास, महंत रघुवीर दास, महंत बिहारी शरण, महंत सूरजदास, महंत गोविंद दास, महंत अगस्त दास, महंत मोहनसिंह, महंत तीरथ सिंह, महंत गुरमीत सिंह, स्वामी ऋषि रामकृष्ण सहित कई संत महापुरुष उपस्थित रहे।

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