हरिद्वार। ब्रह्मलीन संत बाबा जोगिंदर सिंह निर्मल आश्रम हरीपुरा संगरिया राजस्थान वालों की अस्थियां श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल के संतो के संयोजन में कनखल स्थित सती घाट पर विधि विधान से गंगा में प्रवाहित की गई। 135 वर्षीय संत ब्रह्मलीन बाबा जोगिंदर सिंह महाराज की अस्थि कलश यात्रा निर्मल अखाड़े से बैण्ड बाजों के साथ बाजारों से होते हुए सती घाट पहुंची। सती घाट पर पूर्ण वैदिक विधान व मंत्रोच्चारण के साथ संतों ने अस्थियां गंगा में प्रवाहित की। अस्थि प्रवाह के बाद संतों ने अखाड़े में शब्द कीर्तन और अरदास कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।
श्रद्धालु संगत को संबोधित करते हुए श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल के अध्यक्ष श्रीमहंत ज्ञानदेव सिंह महाराज ने कहा कि संतों का जीवन सदैव परोपकार को समर्पित रहता है। ब्रह्मलीन संत बाबा जोगिंदर सिंह महाराज एक महान एवं तपस्वी संत थे। जिन्होंने शतायु होने पर भी धर्म एवं संस्कृति के प्रचार प्रसार के लिए अपना जीवन समर्पित किया और सनातन परंपराओं का निर्वहन करते हुए राष्ट्र निर्माण में अपना अहम योगदान दिया। ऐसे महापुरुषों को संत समाज सदैव स्मरण रखेगा। कोठारी महंत जसविंदर सिंह महाराज ने कहा कि ब्रह्मलीन बाबा जोगेंद्र सिंह महाराज का जीवन निर्मल जल के समान था। उनकी कार्यकुशलता और सहजता सभी के लिए प्रेरणादायक है। युवा संतो को उनके जीवन से प्रेरणा लेकर राष्ट्र एवं समाज उत्थान में अपना सहयोग प्रदान करना चाहिए। वास्तव में वह एक युगपुरुष थे। ब्रह्मलीन बाबा जोगेंद्र सिंह महाराज के कृपा पात्र शिष्य महंत शिवराज सिंह महाराज ने कहा कि महापुरुषों द्वारा प्रदान की गई शिक्षाएं अनंत काल तक समाज का मार्गदर्शन करती है और पूज्य गुरुदेव तो साक्षात त्याग एवं तपस्या की प्रतिमूर्ति थे। जिन्होंने धर्म के संरक्षण संवर्धन के लिए हमेशा ही भावी पीढ़ी को संस्कारवान बनाने का कार्य किया। इतिहास में ऐसी विलक्षण प्रतिभा के धनी संत विरले ही होते हैं। महंत हरदेव सिंह महाराज ने कहा कि महापुरुष केवल शरीर त्यागते हैं। सभी को ऐसे महान संतों के जीवन से प्रेरणा लेते हुए राष्ट्र की एकता अखंडता बनाए रखनी चाहिए और धर्म व संस्कृति के प्रति युवाओं को जागृत करना चाहिए। क्योंकि धर्म के मार्ग पर अग्रसर रहने वाले लोगों की सदा विजय होती है। इस दौरान महंत प्यारा सिंह, महंत अमनदीप सिंह, महंत हरिसिंह, महंत हरबेअंत सिंह, महंत सुखदेव सिंह, महंत अवतार सिंह, महंत अजब सिंह, ज्ञानी महंत खेम सिंह, महंत निर्भय सिंह, संत तलविंदर सिंह, संत सुखमण सिंह, संत हरजोत सिंह, संत जसकरण सिंह, महंत मोहन सिंह, महंत तीरथ सिंह, स्वामी रविदेव शास्त्री, स्वामी हरिहरानंद, महंत गुरमीत सिंह, महंत निर्मल दास सहित कई संत महापुरुष उपस्थित रहे।