हरिद्वार। हरिद्वार स्थित विश्व प्रसिद्ध भारत माता मंदिर का 39 वां स्थापना दिवस धूमधाम से मनाया गया। आपको बता दें 1983 में भारत माता मंदिर की स्थापना हुई थी और इसका उद्घाटन पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा किया गया था।
आज भारत माता मंदिर के पाटोत्सव में हरिद्वार के तमाम वरिष्ठ संतगणो की मौजूदगी में माता मंदिर के अध्यक्ष एवं जूना अखाड़ा आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि ने सबसे पहले भारत माता मंदिर पहुंचकर भारत माता की पूजा अर्चना पूर्व वैदिक मंत्रोच्चारण एवं विधि विधान के साथ की।
स्वामी अवधेशानंद गिरि ने भारत माता मंदिर की व्याख्या करते हुए कहा कि गुरुजी ब्रह्मलीन स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी महराज ने भारत माता मंदिर की स्थापना राष्ट्र को मजबूत एवं भारत को एकजुट करने के लिए की थी।
उन्होंने बताया कि गुरु जी द्वारा किए गए कार्यों की तारीफ पूरे देश के संत समाज के साथ-साथ सनातन धर्म के अनुयायी हर समय करते आए हैं और करते रहेंगे, साथ ही उन्होंने कहा कि जिस तरह से वर्तमान में भारत माता मंदिर ट्रस्ट जनसेवा और कार्य कर रहा है वह सबके सामने हैं और किसी से छिपा नहीं है।
देश से आए भक्तों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि आप इसी तरह से भारत माता की जड़ों को मजबूत करते रहिए और एकजुटता का संदेश पूरे राष्ट्र में पहुंचाते रहिए। इस अवसर पर भारत माता मंदिर के महंत एवं निरंजनी अखाड़ा के महामंडलेश्वर स्वामी ललितानंद गिरि महाराज ने कहा कि पूज्य स्वामी अवधेशानंद गिरी के सानिध्य में जिस तरह से भारत माता मंदिर जनहित के कार्य कर रहा है और एक दृढ़ संकल्प के साथ आगे बढ़ रहा है वह सराहनीय है।
उन्होंने बताया कि देश में बहुत ही कम संख्या में भारत माता के मंदिर हैं और उस में से सबसे विख्यात धर्मनगरी हरिद्वार में भारत माता का मंदिर है लाखों श्रद्धालु महीने में भारत माता मंदिर के दर्शन करने आते हैं और यहां से भारत माता के आशीर्वाद के साथ साथ मां भारती की सेवा करने का संकल्प लेकर जाते हैं। अंत में उन्होंने कहा कि जो भी दिशा हमारे गुरुजनों द्वारा हमें दिखाई गई है मैं उसी पर चलने का प्रयास कर रहा हूं और हमेशा करता रहूंगा। इस अवसर पर भारत माता मंदिर के सचिव आई डी शर्मा ने सभी संत जनों का फूल माला पहनाकर स्वागत किया।
पूजन के उपरांत हरिद्वार के तमाम संतो को भोजन प्रसाद ग्रहण करवाया गया। इस अवसर पर जूना अखाड़ा के महामंडलेश्वर स्वामी यतींद्रानंद गिरि महाराज, स्वामी देवानंद सरस्वती महाराज, महामंडलेश्वर प्रेमानंद सरस्वती, महंत रघुवीर दास, आदि संत मौजूद थे।