डूबते सूर्य को व्रतियों ने दिया अर्घ्य

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हरिद्वार। छठ पूजा को महापर्व के रूप में मनाया जाता है। छठ पूजा साल 2021 में 8 नवंबर, सोमवार से शुरू हो चुकी है जो 11 नवम्बर तक चलेगी। इस पर्व को विशेष तौर पर बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और पड़ोसी देश नेपाल में मनाया जाता है। ये महापर्व चार दिनों तक चलता है लेकिन इसका विशेष दिन कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि होती है। छठ पूजा के दिन व्रती लोग कठिन व्रत रखकर सूर्य देव और छठ मैया की उपासना करते हैं। माना जाता है कि छठ पूजा करने और इस दिन व्रत रखने से घर परिवार में आ रही सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं।

छठ पूजा की विधि (Chhath Puja Vidhi)

कार्तिक शुक्ल छठी तिथि को पूरा दिन निर्जला व्रत रखा जाता है। इस दिन व्रती अपने घर पर बनाए पकवानों और पूजन सामग्री लेकर आसपास के घाटों पर पहुंचते हैं।

घाट पर ईख का घर बनाकर एक बड़ा दीपक जलाया जाता है।

सबसे पहले व्रती घाट में स्नान करते हैं और पानी में रहते हुए ही ढलते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।

इसके बाद घर पर सूर्य देव का ध्यान करते हुए रात भर जागरण किया जाता है। जिसमें छठी माता के प्राचीन गीत गाए जाते हैं।

सप्तमी के दिन यानी व्रत के चौथे और आखिरी दिन सूर्य उगने से पहले घाट पर पहुंचें। इस दौरान अपने साथ पकवानों की टोकरियां, नारियल और फल भी रखें।

अब उगते हुए सूर्य को जल श्रद्धा से अर्घ्य दें। छठ व्रत की कथा सुनें और प्रसाद बांटे।

आखिर में व्रती प्रसाद ग्रहण कर व्रत खोलें।

क्यों दिया जाता हैं डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य?

आमतौर पर उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा बहुत-से व्रत और त्योहारों में है। लेकिन डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा विशेष तौर पर छठ महापर्व में है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शाम के समय सूर्य को अर्घ्य देने से जीवन में संपन्नता और सुखों का आगमन होता है। माना जाता है कि शाम के समय सूर्य अपनी पत्नी प्रत्युषा के साथ होते हैं। कहते हैं कि उन्हें इस समय अर्घ्य देने से जल्द ही मनोकामना पूरी होती है। धार्मिक ग्रन्थों में ऐसा बताया जाता है कि जो डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं, उन्हें उगते हुए सूर्य को भी अर्घ्य देना चाहिए। इससे जल्द मनोकामना पूरी हो सकती है।

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